स्वतंत्रता के बाद भारत अक्सर अनाज आयात पर निर्भर था और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में “begging bowl” की छवि लेकर प्रसिद्ध था। लेकिन 1960–70 के दशक में “हरित क्रांति" (Green Revolution) ने उस स्थिति को पलट दिया। इस क्रांतिकारी परिवर्तन के तीन प्रमुख नाम थे — वैज्ञानिक M. S. Swaminathan, कृषि मंत्री C. Subramaniam और प्रशासक B. Sivaraman। देखते हैं इस लेख उनके योगदान, भारत की खाद्य संकट की तब की स्थिति और हरित क्रांति का आर्थिक लाभ, जो देश को आज भी प्राप्त है।
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भारत की खाद्य संकट की पृष्ठभूमि
1959–60 में भारत का कुल अनाज उत्पादन लगभग 806.2 लाख टन था, जो 1960–61 में बढ़कर लगभग 820 लाख टन के आसपास उन्नत हुआ। लेकिन इस दशक में कई साल ऐसे भी आए जब उत्पादन गिरकर 720–750 लाख टन तक आ जाता था, उदाहरण के लिए, 1965–67 की सूखा अवधि। उस समय के भारत की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, कई वर्षों में भारत को गंभीर खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा।
इन संकटों के बीच, भारत को बड़ी मात्रा में अनाज आयात करना पड़ता था। भारत “ship to mouth” की अपमानजनक स्थिति से जूझ रहा था।
M. S. Swaminathan: वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नवप्रवर्तन
Mankombu Sambasivan Swaminathan को भारत में हरी क्रांति के पितामह माना जाता है। उन्होंने अन्न के बीजों के उच्च उपज की किस्मों (High Yielding Varieties, HYV) पर अनुसंधान किया और 1970 Nobel Peace Prize विजेता Norman Borlaug के साथ वैज्ञानिक सहयोग किया। 1965–66 में उन्होंने किसान-प्रदर्शन खेतों (demonstration plots) स्थापित किए ताकि नए बीज और तकनीक किसानों तक पहुँचें।
उन्होंने “Evergreen Revolution” की अवधारणा प्रस्तुत की — अर्थात् उत्पादन को सतत बनाना, पर्यावरण को कम हानि पहुंचाते हुए। उन्होंने ICAR, IARI और बाद में International Rice Research Institute जैसी संस्थाओं में नेतृत्व किया। स्वामिनाथन ने 2004 में National Commission on Farmers की अध्यक्षता भी की और किसान हितों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की। इन वैज्ञानिक प्रयासों से गेहूं उत्पादन 120 लाख टन से बढ़कर 200 लाख टन या उससे आगे गया।
C. Subramaniam: राजनीति और नीति-निर्माण का नेतृत्व
Chidambaram Subramaniam को हरी क्रांति का राजनीतिक पिता कहा जाता है। 1960 के दशक में, जब कृषि मंत्रालय को कोई लेना नहीं चाहता था, तो प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने Subramaniam को कृषि मंत्री बनाया। उन्होंने उच्च उपज वाली बीज किस्मों और उर्वरक उपयोग को बढ़ावा दिया और इन बदलावों को नीति समर्थन दिलाया। Subramaniam ने आयात नीतियों को पुनर्संतुलित किया और अंतर्राष्ट्रीय सहयोगों (जैसे Rockefeller, अमेरिका आदि) को साकार किया।
उन्होंने संसद में योजनाओं को पेश किया, समर्थन दिया और कार्यान्वयन सुनिश्चित किया। Subramaniam ने B. Sivaraman को कृषि सचिव के रूप में शामिल किया और तीनों ने मिलकर रणनीति तैयार की। Subramaniam के प्रयासों के कारण भारत ने अनाज आयात पर निर्भरता को घटाया और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया।
B. Sivaraman: प्रशासकीय भूमिका और क्रियान्वयन
Balaram Sivaraman एक वरिष्ठ भारतीय civil service अधिकारी थे और 1 जनवरी 1969 से 30 नवंबर 1970 तक भारत के Cabinet Secretary रहे। उन्होंने कृषि सचिव के रूप में कृषि नीतियों के प्रशासन और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए, खासकर नीतिगत design एवं logistic समर्थन देने वाले की तरह काम किए।
Sivaraman ने योजनाओं की निगरानी, अनाज वितरण, अंतर विभागीय समन्वय और प्रशासनिक बाधाओं को दूर करने का काम किया। इस तरह, B. Sivaraman प्रशासकीय “engine room” बने, जहाँ नीति और विज्ञान की योजनाएँ जमीन पर उतरीं।
आर्थिक लाभ, उत्पादन में उछाल और चुनौतियाँ
- भारत का अनाज उत्पादन 1949/50 से 1951/52 के अवधि में औसत ~571 लाख टन से बढ़कर 1981/82 से 1983/84 के अवधि में 1384 लाख टन तक पहुँच गया (2.4 गुना बढ़ोतरी)।
- खेती के आधीन भूमि में वृद्धि हालांकि कम हुई, उसके बावजूद अनाज उत्पादन लगभग 3.5 गुना बढ़ा।
- 1978 तक भारत ने 1310 लाख टन अनाज उत्पादन कर दिग्गज अनाज उत्पादक देशों की पंक्तियों में आ गया।
- 1965 में भारत का गेहूं उत्पादन ~120 लाख टन था; 1970 तक यह ~200 लाख टन हो गया।
- पंजाब जैसे राज्यों में हरी क्रांति के कारण वर्ष दर वर्ष उत्पादन और किसानों की आय में तेज़ी आई; पंजाब 1970 तक देश के लगभग 70% खाद्य अनाज उत्पादन में योगदान देने लगा।
- इस परिवर्तन से निर्यात की पहल भी हुई और भारत “exporter” की स्थिति की ओर बढ़ा।
- सामाजिक-आर्थिक रूप से, कुपोषण और भूख की दर में कमी आई, ग्रामीण आय बढ़ी, और कृषि हस्तक्षेपों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ किया।
- लेकिन चुनौतियाँ भी थीं: पर्यावरणीय दबाव, मिट्टी का ह्रास, पानी की कमी, रासायनिक उर्वरकों का अधिक उपयोग, कृषि विविधता में कमी।
निष्कर्ष
भारत को “begging bowl” की स्थिति से “bread basket” तक ले जाना कोई आसान काम नहीं था। इस परिवर्तन के पीछे M. S. Swaminathan की वैज्ञानिक दूरदृष्टि, C. Subramaniam की राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीतिगत समर्थन, तथा B. Sivaraman की प्रशासकीय कुशलता मिलकर काम करती रही। ये तीनों मिलकर एक ऐसी रणनीति तैयार की जिसने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता दिलाई, किसानों की स्थिति सुधारी और आर्थिक विकास में मदद की।
Keywords: Green Revolution India, M. S. Swaminathan's Contribution, C. Subramaniam, B. Sivaraman, India's Food Security, Grain Production Statistics, India's Grain Imports Reduce, Agricultural Policy India, Indian Agricultural Revolution, India's Self-Reliant Agriculture