केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने हाल ही में बताया कि 2017–18 में 47.5 करोड़ से 2023–24 में रोज़गार 64.33 करोड़ तक पहुँच गया — यानी करीब 16.83 करोड़ का इज़ाफ़ा। साथ ही सरकार ने कहा कि बेरोज़गारी दर 6.0% से घटकर 3.2% हो गई। यह आंकड़ा मीडिया में प्रमुखता में आया है। पर इसमें सच कितना है?
इस तालिका का अनुसरण करते हुए, इन आँकड़ों को पढ़ते समय तीन महत्वपूर्ण बातें याद रखें।
विशेषता | आचरण | व्याख्या |
माप-पद्धति | सरकारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey — PLFS) और अन्य सर्वेक्षण ‘Usual Status’ जैसी परिभाषा अपनाते हैं — जहाँ अगर कोई व्यक्ति सप्ताह में एक घंटा भी आर्थिक गतिविधि (economic activity) करे तो उसे ‘कार्यरत’ (employed) माना जाता है। |
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अनौपचारिक क्षेत्र | भारत में रोज़गार का बड़ा भाग अनौपचारिक है जिसमें अधिकांश छोटे उद्योग, स्वयं-रोज़गार और पारिवारिक यूनिटें शामिल हैं। | वित्तीय सुरक्षा (financial security), स्थिर वेतन (stable wage) के अनुसार नौकरी की 'गुणवत्ता' अक्सर कम रहती है। |
वैकल्पिक सर्वे (Alternative Surveys) | Centre for Monitoring Indian Economy Pvt. Ltd (CMIE) जैसे निजी सर्वेक्षण और कुछ अर्थशास्त्रियों ने अलग अनुमान प्रकाशित किए हैं और कहा है कि वास्तविक बेरोज़गारी उच्च हो सकती है। |
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भारत में रोजगार आंकड़े: सरकारी बनाम अन्य स्रोत
स्रोत | रोज़गार/बेरोज़गारी आँकड़ा | टिप्पणी |
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सरकार (PLFS/PIB, 2017-18) | 47.5 करोड़ रोजगार में | आधारभूत अनुमानित कार्यबल |
सरकार (PLFS/PIB, 2023-24) | 64.33 करोड़ रोजगार में | ताज़ा सरकारी दावा |
सरकार (दावा किया गया बदलाव) | +16.83 करोड़ नई नौकरियाँ | सरकारी बयान में मज़बूत नौकरी वृद्धि |
सरकार (बेरोज़गारी दर, 2017-18) | 6.0% | PLFS 'Usual Status' पद्धति |
सरकार (बेरोज़गारी दर, 2023-24) | 3.2% | दावा किया गया गिरावट |
CMIE (हालिया अनुमान, ~2023) | बेरोज़गारी ~7-8% (मासिक अनुमान) | सरकारी आँकड़ों से अधिक, मासिक उतार-चढ़ाव |
ILO/इंडिया रोजगार रिपोर्ट | कौशल-अंतर और संरचनात्मक चुनौतियाँ | Underemployment और LFPR समस्याएँ |
अनौपचारिक क्षेत्र (ILO/WIEGO) | ~80-85% रोजगार अनौपचारिक | सोशल सिक्योरिटी व स्थिर आय का अभाव |
नतीजा
सरकारी आँकड़े रोज़गार में सुधार का सकारात्मक संकेत देते हैं — पर साथ ही स्वतंत्र सर्वे और माप-पद्धति से जुड़ी सीमाओं को ध्यान में रखना ज़रूरी है। जो व्यक्ति सप्ताह में एक ही घंटा आर्थिक गतिविधि (economic activity) कर पाए, तो उसे ‘कार्यरत’ (employed) मानने जैसे आचार न केवल क्रूर हैं, बल्कि उचित नीति निर्माण के लिए निरर्थक और भ्रामक हैं। नीति निर्माताओं और सर्वेक्षकों को न केवल यह सवाल पूछना चाहिए कि “कितने लोग काम कर रहे हैं”, बल्कि इस पर भी चिंता करना और जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए कि “किस तरह के काम हैं, कितनी आय, कितनी सुरक्षा और कितने घंटे”। तभी इन आँकड़ों का सही उपयोग करके अर्थपूर्ण रोज़गार नीतियां तैयार करना और गुणवत्तापूर्ण नौकरियां पैदा करना संभव होगा।
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